आँखें बंद है मेरी
तीरगी से लिपटा हुआ
ये मन, गहरे बहुत गहरे
धंसता चले जा रहा है.
जब
बेबसी में खुद को छोड़ दिया
तब लगा
मैं रोशनी से घिर गई हूँ
अब मुझे डर किस बात का !
देवी नागरानी
तीरगी से लिपटा हुआ
ये मन, गहरे बहुत गहरे
धंसता चले जा रहा है.
जब
बेबसी में खुद को छोड़ दिया
तब लगा
मैं रोशनी से घिर गई हूँ
अब मुझे डर किस बात का !
देवी नागरानी
1 comment:
मैं रोशनी से घिर गई हूँ
अब मुझे डर किस बात का !
bahut achcha likhi hain.
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