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Wednesday, May 7, 2014

ज़िंदगी चाहती है क्या मुझसे


ग़ज़ल

कुछ न कह कर भी सब कहा मुझसे

जाने क्या था उसे गिला मुझसे

चंद साँसों की देके मुहलत यूँ

ज़िंदगी चाहती है क्या मुझसे

क्या लकीरों की कोई साज़िश थी

रख रही हैं तुझे जुदा मुझसे

जो भरोसे को मेरे छलता है

वो ही उम्मीद रख रहा मुझसे

शोर ख़ामुशी का न अभ पूछो

कह गई अपना हर गिला मुझसे

ऐब मेरे गिना दिये जिसने

दोस्त बनकर गले मिला मुझसे

जिसने रक्खा था क़ैद में मुझको

ख़ुद रिहाई क्यों चाहता मुझसे

Wednesday, January 8, 2014

किस बात का डर

आँखें बंद है मेरी 
तीरगी से लिपटा हुआ मेरा यह मन,
गहरे बहुत, गहरे धंसता चला जाता है 
अपने ही भीतर की खाइयों में, 
आखिर थक हार कर जब, 
मैं बेबसी में खुद को छोड़ देती हूँ, 
तब लगता है मुझे मैं रोशनी से घिर जाती हूँ , 
फिर मुझे डर नहीं लगता 
न जाने किस बात का डर पाल लिया था मैंने 
खुद से भी कोई डरता है क्या? 
अब मुझे डर नहीं लगता । 

 देवी नागरानी

Kuch n Kahkar By Rafique Sheikh

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