चले जिस राह पर बरसों
उन्हें अनजान पाता क्यों ?
कहीं गैरों में अपनापन
कहीं अपना न भाता क्यों ?
बना जो ग़ैर है अपना
उसे फिर से बुलाता क्यों ?
कहीं नफ़रत न कर पाएँ
कहीं है प्यार आता क्यों ?
छलक पड़ते जो आसूँ वो
तू मुझसे है छुपाता क्यों?
खड़ी जिस शाख पर देवी
वहीं आरी चलाता क्यों ?
देवी नागरानी
जीवन के तट पर-मेरे मन की सइरा में सफ़र करते जब मेरे पाँव थक जाते हैं तब कलम का सहारा ले कर शबनमी सपने बुनने लगती हूँ. प्यास की आस बंध जाती है, सफर बाकी कुछ और.... सिर्फ थोड़ा और.....
Saturday, December 25, 2010
Tuesday, December 14, 2010
ये सागर पानी पानी है
ये सागर पानी पानी है
लहर हर इक कहानी है
लहर आए लहर जाए
अजब सी ये रवानी है
उमड़कर बाँध तोडे जो
उसे कहते जवानी है
जो समझे झूठ को है सच
वही दुनियाँ दिवानी है
क्षितिज के पार दुनियाँ इक
हमें भी तो बनानी है
तिलस्मि सारी ये दुनियाँ
यही क्या जिँदगानी है?
देवी नागरानी
लहर हर इक कहानी है
लहर आए लहर जाए
अजब सी ये रवानी है
उमड़कर बाँध तोडे जो
उसे कहते जवानी है
जो समझे झूठ को है सच
वही दुनियाँ दिवानी है
क्षितिज के पार दुनियाँ इक
हमें भी तो बनानी है
तिलस्मि सारी ये दुनियाँ
यही क्या जिँदगानी है?
देवी नागरानी
आई है ख़ुशियों की भोर
बाळ गीत
मस्त फ़िजाँ मेँ भीनी भोर
ख़ुशबू देती चारों ओर
बादल गरजे घनघन घन घन
छाई घटा कारी घन घोर
रिमझिम रिमझिम पानी बरसे
प्यासा मोर मचाए शोर
कळ कळ कळ कळ पानी बहता
प्यास बुझाए प्यासे ढोर
ऊँची उड़ान भरे मन ऐसे
जैसे पतँग की कोई डोर
मदमाती मस्ती है देवी
आई है ख़ुशियों की भोर
देवी नागरानी
मस्त फ़िजाँ मेँ भीनी भोर
ख़ुशबू देती चारों ओर
बादल गरजे घनघन घन घन
छाई घटा कारी घन घोर
रिमझिम रिमझिम पानी बरसे
प्यासा मोर मचाए शोर
कळ कळ कळ कळ पानी बहता
प्यास बुझाए प्यासे ढोर
ऊँची उड़ान भरे मन ऐसे
जैसे पतँग की कोई डोर
मदमाती मस्ती है देवी
आई है ख़ुशियों की भोर
देवी नागरानी
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