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Monday, March 21, 2011

डर किस बात का

आँखें बंद है मेरी
तीरगी से लिपटा हुआ
ये मन, गहरे बहुत गहरे
धंसता चले जा रहा है.
जब
बेबसी में खुद को छोड़ दिया
तब लगा
मैं रोशनी से घिर गई हूँ
अब मुझे डर किस बात का !

देवी नागरानी

1 comment:

mridula pradhan said...

मैं रोशनी से घिर गई हूँ
अब मुझे डर किस बात का !
bahut achcha likhi hain.