अर्थ शास्त्र का अर्थ है उत्पादन
सभी को उत्पादक होना है
वर्ना फिज़ूल है अस्तित्व !
समय से समय निकालकर
इन फिज़ूल अस्तित्व वालों को समय देना
फिज़ूल ख़र्ची मानी जाती है,
समय का सदुपयोग है उत्पादन में
जहां संसार भर की सुविधाएं
उपलब्ध हों, लेकिन
उनका भोग करने के लिए
किसी के पास समय न हो!
यह कैसा अर्थशास्त्र है
जिसके अर्थों में
परिवार नाम की संस्था की
नींव रखने वाले निर्वासित हो रहे हैं
ऐसे में घरों में सन्नाटा बस गया है
बूढ़े कहीं दिखाई नहीं देते!
जवानी की दहलीज़ पार करते ही
एक अवस्था आती है जीवन में
जहां आदमी न जवान रहता है, न बूढ़ा
यह उसी समय की व्यथा है-उत्पादन का न होना ।
जवान बड़े होते हैं,
बूढ़ों को बूढ़ा होने के पहले, बूढ़ा करार किया जाता है
उनका सुख, चैन,
समय गँवाने के पहले, नौजवान,
उनके लिए स्थापित किए गए
वृद्धाश्रम में उन्हें छोड़ आते हैं,
वहीं,
जहां उन्हें अपना कल महफ़ूज नज़र आता है।
अब सोचिए,
नव पीढ़ी के इस सोच का आविष्कार
क्या क्या न देगा
आने वाके कल के वारिसों को
जब घर में बूढ़े न होंगे?
कौन सुनाएगा उन बच्चों को
तोता मैना की कहानी
वे लोरियां, जो
सपनों के संसार से उन्हें जोड़ती हैं,
वो बचपन के किस्से... वो बाबा की बातें....
घर आँगन में तुलसी का रोपना...
गायत्री मंत्र का पाठ, और...
हनुमान चालीसा का दोहराया जाना ...
सभी कुछ तो छूट जाएगा
समय की तंग गलियों में खो जाएगा
और ऐसे संकीर्ण जीवन के सूत्रों से जुड़कर
आदमी असमय ही,
जीवन जीने के पहले बूढ़ा हो जाएगा।
पर,
क्या कर सकता है कोई
उत्पादन के ज़माने में?
यह वक़्त की मांग है
अपने ही स्थापित किए हुए वृद्धाश्रमों में
उन्हें जाना होगा......
आश्रय लेना होगा !
देवी नागरानी
No comments:
Post a Comment