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Friday, December 25, 2020

नारी-जन्मदातिनी

 मर्द की जन्म्दातिनी है औरत

क्यों वह भूल जाता है इस सच को ---

कि वह जीती है, मरती है 

इस सृष्टि के निर्माण के लिए

जो अपने कोख में समाये हुए है

क्यों नहीं उसे दे पाता है वह मान सन्मान

जो उसका जन्मसिद्ध अधिकार है

क्यों वह सोचने की गलती कर बैठता है

वह सिर्फ़ व् सिर्फ़ उसके बच्चों को माँ है

और उसके घर की रखवाली की मात्र चौकीदारिनी

क्यों उसकी आशाओं, इच्छाओं को अपने स्वार्थ के चौखट पर

बार बार बलि पर चढाने की पहल करता हैं

क्यों वह भूल जाता है, कि वह जिंदा है,

सांस ले रही है, आग उगल सकती है.

नहीं! सोच भी कैसे सकता है वह,                                                       

जो अपने ही स्वार्थ की इच्छा के

सड़े गले बीहड़ में वास करते आ रहा है 

गंद दुर्गंध उनकी सांसों में मांसभक्षी प्रवृती व्यापित करती है

वही तो हैं, जो उसके तन को गोश्त समझकर

दबोचते, चबाते, निगलते स्वाद लेता है

भूल जाता हैं कि कभी वह गले में 

फांस बनकर अटक भी सकती है!

देवी नागरानी 

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