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Saturday, December 25, 2010

कहीं है प्यार आता क्यों ?

चले जिस राह पर बरसों
उन्हें अनजान पाता क्यों ?

कहीं गैरों में अपनापन
कहीं अपना न भाता क्यों ?

बना जो ग़ैर है अपना
उसे फिर से बुलाता क्यों ?

कहीं नफ़रत न कर पाएँ
कहीं है प्यार आता क्यों ?

छलक पड़ते जो आसूँ वो
तू मुझसे है छुपाता क्यों?

खड़ी जिस शाख पर देवी
वहीं आरी चलाता क्यों ?
देवी नागरानी

1 comment:

उपेन्द्र नाथ said...

छलक पड़ते जो आसूँ वो
तू मुझसे है छुपाता क्यों?

खड़ी जिस शाख पर देवी
वहीं आरी चलाता क्यों ?

बहुत ही गहरे जज्बात भरे है इस कविता में ....... सुंदर प्रस्तुति.
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