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Monday, October 15, 2007

ईद मुबारक

ईद मुबारक
मुबारक ईद तुमको हो
दिवाली हो हमें भी ये
कहा मैने न कुछ तुमने
मगर हमको मुबारक हो.
खुदा की रहमतों की बस
बडी बरकत है हम सब पर
बरसती वो रहे हम पर
दुआ हमको मुबाराक हो.
समझ में आ गया है ये
सरळ सा लक्श जीवन का
इबादत सार बुनियादी
वही हमको मुबारक हो.
जहाँ सर से ले चोटी तक
सफर अँजाम देगा तब
वहाँ हद सरहादों से जा
मिले, सँगम मुबारक हो.


5 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

ईद के मौके पर लिखी आपकी कविता देखी, अच्छी लगी। आपकी इस पावन सोच को मैं सलाम करता हूं।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

Ed- ke beet jane kee baad bhi iska maza wahi hai..
aachaa laga.

Devi Nangrani said...

अब के दिवाली ज्यादा उज्वल रहेगी, यही कामना करती हूँ.

अंधेरों में जो थी समाई वही अब
उज्जालों की किरणें मेरे घर है आई.

देवी

मीनाक्षी said...

वाह वाह ! ऐसा भाव ये पाकर मन सोचे यह रह रह कर.. क्यो न हम सब जी लें ऐसा पाकीज़ा ख्याल ये पाकर !!

Devi Nangrani said...

मीनाक्षी जी
अब ज़मीरों की बात कौन सुने
बदले तेवर है अब बचा क्या है.

अब दुआओं के दर से लौटे हैं
बेअसर है दुआ, हुआ क्या है.
देवी नागरानी