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Friday, August 26, 2011

हाल अक्सर पूछते थे, क्या हुए



डा. गिरिराजशरण अग्रवाल की एक ग़ज़ल

हाल अक्सर पूछते थे, क्या हुए
लोग जो अच्छे-भले थे, क्या हुए
क्या हुईं वे छाँव वाली शीशमें
पंछियों के घोंसले थे, क्या हुए
अब तो इन शाखों पे कलियाँ तक नहीं
फूल जो कल खिल रहे थे, क्या हुए
दूरियों में कल निकटता शेष थी
वे जो कल तक फ़ासले थे, क्या हुए
फूँकना घर औ’ तमाशा देखना
शहर में कुछ दिलजले थे, क्या हुए
अब से पहली यात्रा में दोस्तो,
सीधे-सीधे रास्ते थे, क्या हुए

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