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Sunday, January 2, 2011

जीवन एक पहेली

जीवन का है अर्थ अनोखा
फिर बिन अर्थ बिताए क्यों ?

बसँत ऋतू में बहार आई
फिर कलियाँ मुरझाए क्यों ?

घनी है जीवन पेड़ की छाया
नीरस पल फिर आए क्यों ?

देह विदेह के अँतर घट में
घने अँधेरे छाए क्यों ?

रचना की सुँदरता में ये
कुरूप पल है आए क्यों ?

सुलझी है हर गुत्थी फिर भी
उलझन के ये साए क्यों ?

कोयल स्वयँ तो काली काली
मीठी कूक सुनाए क्यों ?
देवी नागरानी

1 comment:

mridula pradhan said...

कोयल स्वयँ तो काली काली
मीठी कूक सुनाए क्यों ?
bahut sunder pangtiyan hain.