आज वो
मेरे सामने ठूंठ बनकर खड़ा है
देख रही हूँ पिछले तीन माह से
निरंतर देखती रही मैं
उसकी अठखेलियाँ
हरी भरी लहलहाती वो शाखें
हंसती, झूमती, नाचती वो पत्तियाँ
मौसम के हर रंग से भीगा
वो शजर, भूल गया था झड़ जाना है
उम्र ढली अब घर जाना है.
तमाम ज़िन्दगी बीती उसका
बीज से विस्फोटित होकर
विकसित हुआ, फला फूला
फिर भी, हर बदलता मौसम
उसे तन्हा करता जाता है
और आज
वह मेरे सामने उदास सा
ठूंठ बनकर खड़ा है
मैं उसे देख रही हूँ
वो खिड़की के उस पार
मैं खिड़की के उस पार खड़ी हूँ.
देवी नागरानी
मेरे सामने ठूंठ बनकर खड़ा है
देख रही हूँ पिछले तीन माह से
निरंतर देखती रही मैं
उसकी अठखेलियाँ
हरी भरी लहलहाती वो शाखें
हंसती, झूमती, नाचती वो पत्तियाँ
मौसम के हर रंग से भीगा
वो शजर, भूल गया था झड़ जाना है
उम्र ढली अब घर जाना है.
तमाम ज़िन्दगी बीती उसका
बीज से विस्फोटित होकर
विकसित हुआ, फला फूला
फिर भी, हर बदलता मौसम
उसे तन्हा करता जाता है
और आज
वह मेरे सामने उदास सा
ठूंठ बनकर खड़ा है
मैं उसे देख रही हूँ
वो खिड़की के उस पार
मैं खिड़की के उस पार खड़ी हूँ.
देवी नागरानी
9 comments:
यथार्थ को अभिव्यक्त करती रचना
atyant bhawpurn....
बहुत सुन्दर रचना ! पतझड़ के बिम्ब को लेकर बहुत सूक्ष्मता से एक दर्शन व्याख्यायित कर दिया आपने ! बधाई स्वीकार करें !
ठूंठ हुआ पेड़ और एक पूरी उम्र गुजार चूका व्यक्ति ...
एक खिड़की के इस पार , एक उस पार ...
पतझड़ सिर्फ पेड़ों पर नहीं इंसानों पर भी आता है ...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
वाह बहुत सुंदरता से लिखी है कविता.
पूरा जीवन दर्शन समाहित है आपकी रचना में
आदरणीय सुश्रीदेवीजी,
तितली को पता है,बसंत बिखर ने को है,इसीलिए वह अपना सारा आनंद पुष्प पर लुटा देती है..!!
बहुत सटीक,सुंदर रचना..!!
बहुत-बहुत बधाई।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
Is sahil par insaniyat khadi hai aur aap sabhi ki pratikriya use sampoorn saans lene ke liye protsahit karti rahegi
sadar
Devi Nangrani
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