अगर सूरज सदा सोता
कहाँ रौशन जहाँ होता
खरीदी जाती गर खुशियाँ
अमीरी में न ग़म होता
अगर मिल जाता खाने को
न कोई भूख से रोता
किसी को होती चिँता क्यों
सुकूँ की नींद वो सोता
परेशानी, पशेमानी
वो है पाता जो है बोता
लगे चिँता चिता उसको
लगाए इसमें जो गोता
ये इन्साँ बैल है देवी
जिसे जीवन ने है जोता
देवी नागरानी
जीवन के तट पर-मेरे मन की सइरा में सफ़र करते जब मेरे पाँव थक जाते हैं तब कलम का सहारा ले कर शबनमी सपने बुनने लगती हूँ. प्यास की आस बंध जाती है, सफर बाकी कुछ और.... सिर्फ थोड़ा और.....
Tuesday, November 16, 2010
Tuesday, November 9, 2010
भूखे को तुम रोटी दे दो
मोटी हो या दुबली दे दो
दादी माँ को पोती दे दो
पेट नसीहत से न भरेगा
भूखे को तुम रोटी दे दो
बिन पानी के प्यासे पौधे
उनको जल की लोटी दे दो
बाल नहीं हैं जिनके सर पर
उनको लंबी चोटी दे दो
फुटपाथों पर जो रोते हैं
उनको छोटी खोली दे दो
झूठ और सच को परखे ‘देवी’
ऐसी एक कसौटी दे दो
देवी नागरानी
दादी माँ को पोती दे दो
पेट नसीहत से न भरेगा
भूखे को तुम रोटी दे दो
बिन पानी के प्यासे पौधे
उनको जल की लोटी दे दो
बाल नहीं हैं जिनके सर पर
उनको लंबी चोटी दे दो
फुटपाथों पर जो रोते हैं
उनको छोटी खोली दे दो
झूठ और सच को परखे ‘देवी’
ऐसी एक कसौटी दे दो
देवी नागरानी
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