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Tuesday, October 23, 2012

एक शाम अंजना के नाम





दिनांक 7, जून 2009 न्यू यार्क में पूर्णमासी के दिन,  श्रीमती पूर्णिमा देसाई के शिक्षायतन के देवालय में ड़ा अंजना संधीर के सन्मान में एक काव्या गोष्टी का आयोजन सफलता पूर्ण संपूर्ण हुआ. आगाज़ी शब्दों में पूर्णिमा देसाई शिक्षायतन की संस्थापिका एवं निर्देशिका ने ये कहते हुए" मैं एक ऐसी विभूति को बुला रही हूँ जिन्होने साहित्य के प्रचार में, संस्कृति के प्रचार में अपना योगदान दिया है और वह है डा. अंजना संधीर" जिन्होने मंच की शान बढाते हुए दीप प्रज्वलित किया. शिक्षायतन संस्था के संगीत विभाग से जुड़े सुर-सागर के श्री  माहिर पंडित कमल मिश्रा जी ने माता के चरणों में गुलाब के फूलों को अर्पित करते हुए सरस्वती वंदना की. वातावरण की पाकीजगी में माँ की सरस्वती का स्तुति गायन वन्दनीय रहा.अपने भावों को व्यक्त करते हुए अंजना जी ने कहा " मै यहीं हूँ, यहीं थी और यहाँ से कहीं नहीं गयी" और अपनी व्याख्यान में कुछ न कहते हुए उन्होने यू. के. से आए डा. कृष्णा कुमार जो को सादर आमंत्रित किया जिन्होंने अपने विचार प्रस्तुति करने से पहले पूर्णिमा जी को बधाई की पात्र मानते हुए अंजना के लिये कहा कि " अंजना जी का कम बोलता है" यह हर नारी जाति के लिए गर्व की बात रही जो "प्रवासिनी के बोल " और "प्रवासी आवाज़ " के मंच पर अपने आपको स्थापित कर पाई है. अंजना जी का कहना और मानना है कि अमेरिका के हर शहर में उसका एक घर है और सीमाओं से परे उनके रिश्ते हैं जिनकी कोई सरहदें नहीं बाँध पाएँगी.         भावों के आदान प्रदान के पश्चात् काव्य गोष्टी प्रारंभ हुई जिसका स्वरुप अंतराष्टीय गोष्टी से कम न था. आगाज़ की रचना का पाठ किया डा. दाऊजी गुप्त ने, जो लखनऊ से पधारे थे. यू. के. से डा. कृष्ण कुमार जी ने अपनी रचना पाठ के बाद अपने साथी साहित्यकार और कविगन को आवाज़ दी जिनमें वहां मौजूद थे डॉ.कृष्ण कनैया, श्रीमती जय वर्मा, श्री नरेन्द्र ग्रोवर और श्रीमती स्वर्ण तलवाड़. उनके ही पश्चात अनूप और रजनी भार्गव ने अपनी नन्हीं नन्हीं कविताओं के कपोलों से ज़िन्दगी के अंकुरित नए रंग माहौल में भर दिए. टोरंटो से श्री गोपाल बगेल जी ने सुरमई धुन में अपनी रचना सुनाई. फिर मंच को थामा न्यू यार्क तथा न्यू जर्सी के कविओं में जिनमें शामिल रहे श्री अशोक व्यास, श्री ललित अल्लुवालिया, मंजू राइ, बिन्देश्वरी अग्रवाल, अंजना संधीर, पूर्णिमा देसाई, गौतमजी, पुष्पा मल्होत्रा, नीना वाही, अनुराधा चंदर, डा. अनिल प्रभा, गिरीश वैद्य, देवी नागरानी, लखनऊ से आई श्रीमती शशि तिवारी और उनकी सुपुत्री शिवरंजनी. श्रोताओं में रहे श्री कथूरिया जी, परवीन शाहीन, रेनू नंदा और अनेकों साहित्यप्रेमी. यहाँ मैं डॉ. सरिता मेहता का ज़िक्र ज़रूर करना चाहूंगी, जो खुद विध्याधाम संस्था की निर्देशिका है और साथ में अच्छी कवियित्री होने के नाते काव्य पाठ का मज़ा श्रोताओं तक पहुँचाया .इस काव्य सुधा की शाम में उनका पूरी तरह से सहकार रहा. समाप्ति की ओर कदम बढाते हुए पूर्णिमा जी ने अंजना जी का सन्मान " साहित्य मणि' की उपाधि से श्री दाऊजी गुप्त के हाथों से करवाया, और सभी कविगन का साधुवाद किया. शुभ शुरुवात की समाप्ति भोजन के साथ हुई.देवी नागरानी

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