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Tuesday, May 24, 2011

मन की सइरा

मेरी यादों का सागर

हिचकोले खाता, लहराता

मेरे मन के अंतरघट को छूता है,

मेरी इच्छा, अनिच्छा के आंचल को

कभी तो भिगो कर जलमय करता,

कभी तो खुश्क मरुस्थल की तरह

छोड़ जाता है

जाने क्यों मेरा मन

प्यासा ही प्यासा

किसी अनजान, अद्रश्य

तट पर बसना चाहता है

जहां मेरे मन की सइरा

निर्जल होने से बच जाए

रेत-रेत ना रहे

पानी पानी हो जाए.

देवी नागरानी

2 comments:

Arun sathi said...

अति सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जहां मेरे मन की सइरा

निर्जल होने से बच जाए

रेत-रेत ना रहे

पानी पानी हो जाए.

बहुत सुन्दर ख्वाहिश