मेरी यादों का सागर
हिचकोले खाता, लहराता
मेरे मन के अंतरघट को छूता है,
मेरी इच्छा, अनिच्छा के आंचल को
कभी तो भिगो कर जलमय करता,
कभी तो खुश्क मरुस्थल की तरह
छोड़ जाता है
जाने क्यों मेरा मन
प्यासा ही प्यासा
किसी अनजान, अद्रश्य
तट पर बसना चाहता है
जहां मेरे मन की सइरा
निर्जल होने से बच जाए
रेत-रेत ना रहे
पानी पानी हो जाए.
देवी नागरानी
हिचकोले खाता, लहराता
मेरे मन के अंतरघट को छूता है,
मेरी इच्छा, अनिच्छा के आंचल को
कभी तो भिगो कर जलमय करता,
छोड़ जाता है
जाने क्यों मेरा मन
प्यासा ही प्यासा
किसी अनजान, अद्रश्य
तट पर बसना चाहता है
जहां मेरे मन की सइरा
निर्जल होने से बच जाए
रेत-रेत ना रहे
पानी पानी हो जाए.
देवी नागरानी
2 comments:
अति सुन्दर
जहां मेरे मन की सइरा
निर्जल होने से बच जाए
रेत-रेत ना रहे
पानी पानी हो जाए.
बहुत सुन्दर ख्वाहिश
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