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Tuesday, February 1, 2011

रिशतों में है सौदेबाज़ी



रिशतों में है सौदेबाज़ी
कोई नहीं है किससे राज़ी.

तुम गर सेर सवा मैं भी हूँ
समझो भल पर कम नहीं हूँ

तू मेरा मैं तेरा काजी
कोई नहीं है किससे राज़ी

"तेरा मेरा" करके बढ़ाई
दिल में दरार की यह खाई

इक दूजे के वो सौदाई
कोई नहीं है किससे राज़ी

नहीं शिकायत शिकवा कोई
कौन यहाँ है दिलबर देवी

लुटी लुटी है सारी खुदाई
कोई नहीं है किससे राज़ी
देवी नागरानी

7 comments:

रश्मि प्रभा... said...

तुम गर सेर सवा मैं भी हूँ
समझो भल पर कम नहीं हूँ
bilkul sachchi baat

mridula pradhan said...

रिशतों में है सौदेबाज़ी
कोई नहीं है किससे राज़ी.
ek kadve sach ko bakhoobi likh di hai aapne.

Shikha Kaushik said...

aaj ke rishton ki kalai kholti aapki kavita dil ko choo gayi .aabhar

विशाल said...

रिश्तों की सचाई बयाँ कर दी आपने.
बहुत ही बढ़िया

Devi Nangrani said...

Yeh Hamari aut tumhari duniya ka nagn satya hai. aaapki pratikriya ke liye bahut bahut aabhar

सुनील गज्जाणी said...

तुम गर सेर सवा मैं भी हूँ
समझो भल पर कम नहीं हूँ
bilkul sachchi baat

Dr Varsha Singh said...

"तेरा मेरा" करके बढ़ाई
दिल में दरार की यह खाई

वाह..क्या खूब लिखा है आपने।