वो पारस क्या जिसे छूकर
न लोहा बन सके सोना
विकारों मैं है मन मैला
शरीरों को है क्या धोना?
यह रिश्तों की बची है राख
नए फिर बीज क्यों बोना?
सजा कर दिल में बर्बादी
किया आबाद हर कोना
न ऐसी चाह रख दिल में
जहाँ पा कर पड़े खोना
ख़ुशी मातम मनाती जब
ग़मों को आ गया रोना
मुझे दे पाक दिल मौला
न धन मांगूँ न मैं सोना
यह जीवन कैसा है देवी
सलीबों को जहाँ ढोना
देवी नागरानी
8 comments:
बहुत ही सुन्दर कविता....
दिल को छू गई..
तन का धोना
व्यर्थ व बेफ़ायदा
मन जो मैला
आभार !
bahut achchi lagi.
बहुत बढ़िया कविता है.खुदा आपको जोरे कलम और ज्यादा दे
Aapke shabdon se mera housla kayam rahta hai. Tahe dil se aabhaar
bahut sateek likha hai aapne .sarthk lekhan ke liye badhai .mere blog ''vikhyat' par aapka hardik swagat hai .
ye jeewan aur kya devi ?
ye mittee ka khilauna hai ;
fana hone se darna hai ,
bichhad jaane pe rona hai .
ajab uspar ki koi kaam karta
ek tona hai ;
jo mil mil jaaye wo bas patthar
jo kho jaaye wo sona hai .
खूबसूरत रचना.. पर दर्द बहुत है..
Post a Comment