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Monday, August 29, 2011

हमने पाया तो बहुत कम है



ग़ज़लः
हमने पाया तो बहुत कम है, बहुत खोया है

दिल हमारा लबे-दरिया पे बहुत रोया है

कुछ न कुछ टूट के जुड़ता है यहाँ तो यारो

हमने टूटे हुए सपनों को बहुत ढोया है

अर्सा लगता है जिसे पाने में वो पल में खोया

बीज अफसोस का सहरा में बहुत बोया है

तेरी यादों के मिले साए बहुत शीतल से

उनके अहसास से तन-मन को बहुत धोया है

होके बेदार वो देखे तो सवेरे का समां

जागने का है ये मौसम वो बहुत सोया है

बेकरारी को लिये शब से सहर तक ये दिल

आतिशे-वस्ल में तड़पा है, बहुत रोया है

इम्तहाँ ज़ीस्त ने कितने ही लिये हैं ‘देवी’

उन सलीबों को जवानी ने बहुत ढोया है

देवी नागरानी

7 comments:

mridula pradhan said...

bahut khoobsurat likhi hain......

हरकीरत ' हीर' said...

कुछ न कुछ टूट के जुड़ता है यहाँ तो यारो
हमने टूटे हुए सपनों को बहुत ढोया है

क्या बात ....
देवी नागरानी जी लाजवाब ग़ज़ल ....
यूँ आप तो हमेशा ही लाजवाब लिखतीं हैं ....:))

रश्मि प्रभा... said...

वाह ... क्या बात है

kunwarji's said...

Bahut hi badhiya...
Vandna ji ka yaha tk pahunchane k liye aabhaar

Kunwar ji

Devi Nangrani said...

aap sabhee ka tahe dil se abahaar mere Sahil par aane ke liye. Vandana Ji Mujhe khud se aur samast parivaar ke saath jodne ke liye Dhanyawaad

Udan Tashtari said...

प्रणाम!!

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारें, प्रतीक्षा है आपकी .