ग़ज़ल
कुछ न कह कर भी सब कहा मुझसे
जाने क्या था उसे गिला मुझसे
चंद साँसों की देके मुहलत यूँ
ज़िंदगी चाहती है क्या मुझसे
रख रही हैं तुझे जुदा मुझसे
जो भरोसे को मेरे छलता है
वो ही उम्मीद रख रहा मुझसे
शोर ख़ामुशी का न अभ पूछो
कह गई अपना हर गिला मुझसे
ऐब मेरे गिना दिये जिसने
दोस्त बनकर गले मिला मुझसे
जिसने रक्खा था क़ैद में मुझको
ख़ुद रिहाई क्यों चाहता मुझसे
1 comment:
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
जो भरोसे को मेरे छलता है
वो ही उम्मीद रख रहा मुझसे
क्या बात है जी !
नायाब शेर ...
आपकी हर ग़ज़ल की तरह मयारी ग़ज़ल !!
आदरणीया देवी नांगरानी जी
सादर प्रणाम !
आपकी खूबसूरत आवाज़ में ग़ज़ल सुनना बहुत बड़ा सौभाग्य है !
:)
पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से बहुत पहले से आपको पढ़ता रहा हूं ।
आपकी ग़ज़लों का मैं हमेशा ही बहुत बड़ा मुरीद रहा हूं ...
# आपने एक एक कर दो बार में अपनी दो पुस्तकें मुझे भेजी थी ... जो मेरे लिए किसी अनमोल ख़ज़ाने से कम नहीं ।
आपका ताज़ा कलाम पढ़ने की बहुत इच्छा रहती है...
ब्लॉग पर ताज़ा कलाम डालें कृपया !
... और नहीं तो अपनी पुरानी ग़ज़लियात को गा कर ही लगाते रहें ...
आप क़लम और कंठ से सदैव सुंदर , श्रेष्ठ सृजन का सारस्वत प्रसाद ऐसे ही बांटती रहें …
नव वर्ष २०१३ की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
◄▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼►
31 दिसंबर 2012
Post a Comment