प्रिय देवी,
आज वक़्त की शाख़ से टूटकर एक लम्हां
मेरी याद के आँगन में आकर ठहरा है
कुछ सोचों का सिलसिला चलता रहा
फिर जाने कब वो कहाँ टूटता रहा,
और साथ उसके क्या क्या टूटा
क्या बताऊँ मैं तुम्हें?
इन्सान की फितरत बदली
साथ उसके बँट गए आँगन
दीवार बन गई रिश्तों के बीच में,
अँह की गर्दन तन गई,
इन्सानियत को खा गई इन्सान की हवस
सर्द हो गई प्यार की बाती
सन्नाटों की सल्तनत बाकी रही
जहाँ ठँडी छाँव को आदमी तरस रहे हैं.
तन तो खिज़ाओं की थपेड़ों से झड़ रहे हैं..
आगे और क्या लिखूँ? मन भर आया है
बस यादों के दीपक असुवन में झिलमिला रहे हैं,
बुझती हुई साँसों ने आज फिर चोट खाई है
इन यादों के आँगन में, जहाँ ठहरा हुआ वह पल
मेरे अस्तित्व को पुकार रहा है,
जाने कब मिलना हो?
तब तक,
तेरी परछाई
॥ जिसे वक्त की आँधी उड़ाकर फिर से आँगन में ले आई॥
देवी नागरानी
आज वक़्त की शाख़ से टूटकर एक लम्हां
मेरी याद के आँगन में आकर ठहरा है
कुछ सोचों का सिलसिला चलता रहा
फिर जाने कब वो कहाँ टूटता रहा,
और साथ उसके क्या क्या टूटा
क्या बताऊँ मैं तुम्हें?
इन्सान की फितरत बदली
साथ उसके बँट गए आँगन
दीवार बन गई रिश्तों के बीच में,
अँह की गर्दन तन गई,
इन्सानियत को खा गई इन्सान की हवस
सर्द हो गई प्यार की बाती
सन्नाटों की सल्तनत बाकी रही
जहाँ ठँडी छाँव को आदमी तरस रहे हैं.
तन तो खिज़ाओं की थपेड़ों से झड़ रहे हैं..
आगे और क्या लिखूँ? मन भर आया है
बस यादों के दीपक असुवन में झिलमिला रहे हैं,
बुझती हुई साँसों ने आज फिर चोट खाई है
इन यादों के आँगन में, जहाँ ठहरा हुआ वह पल
मेरे अस्तित्व को पुकार रहा है,
जाने कब मिलना हो?
तब तक,
तेरी परछाई
॥ जिसे वक्त की आँधी उड़ाकर फिर से आँगन में ले आई॥
देवी नागरानी
1 comment:
जिसे वक्त की आँधी उड़ाकर फिर से आँगन में ले आई॥
wah.....kya baat hai.
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