ग़ज़लः
हमने पाया तो बहुत कम है, बहुत खोया है
दिल हमारा लबे-दरिया पे बहुत रोया है
हमने टूटे हुए सपनों को बहुत ढोया है
अर्सा लगता है जिसे पाने में वो पल में खोया
बीज अफसोस का सहरा में बहुत बोया है
तेरी यादों के मिले साए बहुत शीतल से
उनके अहसास से तन-मन को बहुत धोया है
होके बेदार वो देखे तो सवेरे का समां
जागने का है ये मौसम वो बहुत सोया है
बेकरारी को लिये शब से सहर तक ये दिल
आतिशे-वस्ल में तड़पा है, बहुत रोया है
इम्तहाँ ज़ीस्त ने कितने ही लिये हैं ‘देवी’
उन सलीबों को जवानी ने बहुत ढोया है
देवी नागरानी
7 comments:
bahut khoobsurat likhi hain......
कुछ न कुछ टूट के जुड़ता है यहाँ तो यारो
हमने टूटे हुए सपनों को बहुत ढोया है
क्या बात ....
देवी नागरानी जी लाजवाब ग़ज़ल ....
यूँ आप तो हमेशा ही लाजवाब लिखतीं हैं ....:))
वाह ... क्या बात है
Bahut hi badhiya...
Vandna ji ka yaha tk pahunchane k liye aabhaar
Kunwar ji
aap sabhee ka tahe dil se abahaar mere Sahil par aane ke liye. Vandana Ji Mujhe khud se aur samast parivaar ke saath jodne ke liye Dhanyawaad
प्रणाम!!
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारें, प्रतीक्षा है आपकी .
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