गज़लः
मताये कुव्वते ईमान का जोया कहाँ हूँ मैं
तहज्जुद की नमाजौं में अभी रोया कहाँ हूँ मैं
शजर एक सायादार उग आये जिस के खुश्क सीने से
अभी वो बीज मिटटी में तेरी बोया कहाँ हूँ मैं
तुम्हारे ख्वाब और ताबीर मेरी कोई तुक भी है
अरे बेदार मग्जो!! उम्र भर सोया कहाँ हूँ मैं
अभी कुछ शर्मसारी हो अभी कुछ अश्क बहने दो
जो दाग उभरे हैं दामन पर उन्हें धोया कहाँ हूँ मैं
तेरी आँखौं से आँसु के बजाये खून जारी हो
कहानी दुःख भरी सुन कर अभी रोया कहाँ हूँ मैं
पहाडौं ने जिसे धोने से माजूरी जताई थी
अभी तक सर पे अपने बोझ वो धोया कहाँ हूँ मैं
मेरी चीखौं को सब नगमा समझ कर दाद देते हैं
अज़ीज़ इस शहरे बेएहसास में खोया कहाँ हूँ मैं
शायरः अज़ीज़ बेलगामी
गायकः गुलोकार रफ़ीक़ शेख़
गायकः गुलोकार रफ़ीक़ शेख़
2 comments:
अज़ीज़ बेलगामी की लाजवाब ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए आभार.
वाह रफ़ीक़ शेख़ की ज़बरदस्त आवाज़ में शायरः अज़ीज़ बेलगामी का कलाम । शुक्रिया देवीजी।
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