चौपाल में
आमने सामने हम खड़े हैं
पहले भी कई बार मिले हैं
मूकता की महफ़िलों में
आस-पास बैठे हैं
बनकर दोनों अजनबी!
और
मैं चाहती हूँ
मैं अनजान ही रहूँ तुम्हारे लिए,
और,
तुम भी मेरे लिए शायद……
पहचान
हर रिश्ते का अंत कर देती है।
पहले भी कई बार मिले हैं
मूकता की महफ़िलों में
आस-पास बैठे हैं
बनकर दोनों अजनबी!
और
मैं चाहती हूँ
मैं अनजान ही रहूँ तुम्हारे लिए,
और,
तुम भी मेरे लिए शायद……
पहचान
हर रिश्ते का अंत कर देती है।
1 comment:
बहुत सुंदर,बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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