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Saturday, August 24, 2013

काला उजाला


वह एक धोबिन

अपनी ही दरिद्रता की

गंदगी में

अमीरी की मैल धोती है।

 

उस बाहरी उजलेपन को

देखने वाली आँखें

उसके पीछे का मटमैलापन

नहीं देख पातीं।

 

काश अमीरी भेद पाती  

तो यक़ीनन देखती और महसूसती

उस गंदगी की बदबू को

जो वह ओढ़ती रहती है बार-बार

सच मानिए, तब वह ज़रूर

एक उजला रुमाल

अपनी नाक पर ज़रूर धर देती।

देवी नागरानी

3 comments:

रज़िया "राज़" said...

वह एक धोबिन
अपनी ही दरिद्रता की
गंदगी में
अमीरी की मैल धोती है।
वाह बहोत ख़ूब। आपको ढूंढते हुए आख़िर आप तक आ ही पहुंची हुं मैं मे'म

रज़िया "राज़" said...

वह एक धोबिन
अपनी ही दरिद्रता की
गंदगी में
अमीरी की मैल धोती है।
वाह बहोत ख़ूब। आपको ढूंढते हुए आख़िर आप तक आ ही पहुंची हुं मैं मे'म

Devi Nangrani said...

Aapki bahut bahut shukriya is aagaman ke liye :