मैं वो कविता हूँ
जो कोई क़लम न लिख पाई
रात के सन्नाटों में
तन्हाइयों का शोर
ज्वालामुखी बन कर उबल पड़ा,
इक दर्द जो सदियों से
चट्टान बनकर मेरे भीतर जम गया था
वही पिघलकर
एक पारदर्शी लावा बनकर बह गया
जब मैं खाली हुई
तब जाकर जाना कि मैं कौन हूँ
देवी नागरानी
जो कोई क़लम न लिख पाई
रात के सन्नाटों में
तन्हाइयों का शोर
ज्वालामुखी बन कर उबल पड़ा,
इक दर्द जो सदियों से
चट्टान बनकर मेरे भीतर जम गया था
वही पिघलकर
एक पारदर्शी लावा बनकर बह गया
जब मैं खाली हुई
तब जाकर जाना कि मैं कौन हूँ
देवी नागरानी
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