आबला पा हुए हैं हम चलते चलते कल से आज तक के इस सफ़र में , जो मेरे बचपन को लेकर अब तक की मेरी जिंदगी को ज़ब्त कर चुका है ओर निश्चित है आज से आने वाले कल तक का सफ़र भी तय होगा शायद वो रिसते हुए छाले क़दम दर क़दम आगे और आगे बढ़ते रहें इस आशा में, कि मेरे पांव भटक कर संभल जाएं पर, कहीं गुमराह न हो!
देवी नागरानी
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