गज़ल
कुछ अंधेरो में दीपक जलाओ
आशियानों को अपने सजाओ.
घर जलाकर न यूँ मुफलिसों के
उनकी दुश्वारियाँ तुम बढ़ाओ.
कुछ ख़राबी नहीं है जहाँ में
नेकियों में अगर तुम नहाओ.
प्यार के बीज बोकर दिलों में
ख़ुद को तुम नफ़रतों से बचाओ.
शर्म से है शिकास्तों ने पूछा
जीत का अब तो घूँघट उठाओ.
इलत्ज़ा अशक़ करते हैं देवी
ज़ुल्म की यूँ न हिम्मत बढ़ाओ.२०९
कुछ अंधेरो में दीपक जलाओ
आशियानों को अपने सजाओ.
घर जलाकर न यूँ मुफलिसों के
उनकी दुश्वारियाँ तुम बढ़ाओ.
कुछ ख़राबी नहीं है जहाँ में
नेकियों में अगर तुम नहाओ.
प्यार के बीज बोकर दिलों में
ख़ुद को तुम नफ़रतों से बचाओ.
शर्म से है शिकास्तों ने पूछा
जीत का अब तो घूँघट उठाओ.
इलत्ज़ा अशक़ करते हैं देवी
ज़ुल्म की यूँ न हिम्मत बढ़ाओ.२०९
1 comment:
बहुत सुन्दर जज़्बा ... ! मेरी शुभकामनाएँ
Post a Comment