जीवन के तट पर-मेरे मन की सइरा में सफ़र करते जब मेरे पाँव थक जाते हैं तब कलम का सहारा ले कर शबनमी सपने बुनने लगती हूँ. प्यास की आस बंध जाती है, सफर बाकी कुछ
और....
सिर्फ थोड़ा और.....
जी हाँ देवी जी, ये अशोक चक्रधर जी हैं जिनके ब्लॉग मे एक पोस्टिंग के कमेंट के रूप मे मैंने इस कविता की रचना की थी. यदि आप उनका वो ब्लॉग पढे तो ज्यादा अच्छा लगेगा. ashokchakradhar.blogspot.com
2 comments:
Are YasH tum yahan kaise aa gaye. maine kitna dhoondha tumhein.
Daadi
जी हाँ देवी जी, ये अशोक चक्रधर जी हैं जिनके ब्लॉग मे एक पोस्टिंग के कमेंट के रूप मे मैंने इस कविता की रचना की थी. यदि आप उनका वो ब्लॉग पढे तो ज्यादा अच्छा लगेगा. ashokchakradhar.blogspot.com
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