अर्थ शास्त्र का अर्थ है उत्पादन
साहिल-साहिल रेती-रेती
जीवन के तट पर-मेरे मन की सइरा में सफ़र करते जब मेरे पाँव थक जाते हैं तब कलम का सहारा ले कर शबनमी सपने बुनने लगती हूँ. प्यास की आस बंध जाती है, सफर बाकी कुछ और.... सिर्फ थोड़ा और.....
Friday, December 25, 2020
उत्पादन का ज़माना
ग़ुरबत का सूद
नहीं चुका पाऊंगी मैं
उस बनिए के बिल को
गिरवी जिसके पास रखी है मेरी गुरबत,
यही तो मेरी पूंजी है, जो निरंतर बढ़ती जा रही है
कर्ज़ के रूप में
जिसे खाती जा रही है,
जिसे निगलती जा रही है, मेरी इच्छाओं की भूख!!
और साथ उसके, बढ़ रहा है सूद भी
हाँ सूद, उन पैसों पर , जो मैंने कभी लिए ही न थे!
हा, पेट की खातिर ले आई थी
दो मुट्ठी आटा, चार दाने चावल
कभी दाल तो कभी साबू दाने,
उबाल कर अपने ही गुस्से के जल में
पी जाती हूँ
पिछले कई सालों से, हाँ गुज़रे कई सालों से लगातार
झुकते झुकते, मेरी गुरबत की कमर
अब दोहरी हो गई है
न कभी सीधी हुई, न होगी, उस सूदखोर अमीरों के आगे
कर्ज़दार थी, और सदा रहेगी!
देवी नागरानी
माँ ने कहा था
माँ ने कहा था
ग़ुरबत का सूद
उस बनिए के बिल को
गिरवी जिसके पास रखी है मेरी गुरबत,
यही तो मेरी पूंजी है, जो निरंतर बढ़ती जा रही है
कर्ज़ के रूप में
जिसे खाती जा रही है,
जिसे निगलती जा रही है, मेरी इच्छाओं की भूख
और साथ उसके, बढ़ रहा है सूद भी
हाँ सूद, उन पैसों पर , जो मैंने कभी लिए ही न थे!
हा, पेट की खातिर ले आई थी
दो मुट्ठी आटा, चार दाने चावल
कभी दाल तो कभी साबू दाने,
उबाल कर अपने ही गुस्से के जल में
पी जाती हूँ
पिछले कई सालों से, हाँ गुज़रे कई सालों से लगातार
झुकते झुकते, मेरी गुरबत की कमर
अब दोहरी हो गई है
न कभी सीधी हुई, न होगी, उस सूदखोर अमीरों के आगे
कर्ज़दार थी, और सदा रहेगी!
देवी नागरानी
नारी कोई भीख नहीं
नारी कोई भीख नहीं
न ही
मर्द कोई पात्र है
जिसमें
उसे उठाकर उंडेला जाता है
जिसे उलट-पुलट
कर देखा जाता है
उसके तन
की खुशबू का मूल्य आँका जाता है
खरीदा
जाता है, इस्तेमाल किया जाता है
तद
पश्चात उसे
तोड़ मरोड़
कर यूँ फेंका जाता है
जैसे कोई
कूड़ा करकट भी नहीं फेंकता.
अब
अवस्था बदलनी चाहिए
अब वे
हाथ कट जाने चाहिए
जो औरत
को, अपना माल समझकर
आदान-प्रदान
की तिजारती रस्में
निभाने
की मनमानी करते हैं
सोचिये, सोचिये मत ग़ौर
कीजिये
जब औरत
वही क़दम उठा पाने की हिम्मत जुटा पाएगी, तब
तोड़ न पाओगे / न मोड़ पाओगे उस हिम्मत को
जो राख़ के तले /
चिंगारी बनकर छुपी हुई है /
दबी हुई है, बुझी नहीं है
मत छेड़ो, मत आज़माओ,
उसको जो जन-जीवन के /निर्माण का अणु है।
मत बनो हत्यारे /उन जज़्बों के, उन अधूरे ख्वाबों के
जो ज़िंदा आँखों में पनपने की तौफ़ीक़ रखते हैं।
देवी नागरानी
नारी-जन्मदातिनी
मर्द की जन्म्दातिनी है औरत
क्यों वह
भूल जाता है इस सच को ---
इस
सृष्टि के निर्माण के लिए
जो अपने
कोख में समाये हुए है
क्यों
नहीं उसे दे पाता है वह मान सन्मान
जो उसका
जन्मसिद्ध अधिकार है
क्यों वह
सोचने की गलती कर बैठता है
वह सिर्फ़
व् सिर्फ़ उसके बच्चों को माँ है
और उसके
घर की रखवाली की मात्र चौकीदारिनी
क्यों उसकी
आशाओं, इच्छाओं को अपने स्वार्थ के चौखट पर
बार बार
बलि पर चढाने की पहल करता हैं
क्यों वह
भूल जाता है, कि वह जिंदा है,
सांस ले रही
है,
आग उगल सकती है.
नहीं! सोच भी कैसे सकता है वह,
जो
अपने ही स्वार्थ की इच्छा के
सड़े गले
बीहड़ में वास करते आ रहा है
गंद
दुर्गंध उनकी सांसों में मांसभक्षी प्रवृती व्यापित करती है
वही तो
हैं, जो उसके तन को गोश्त समझकर
दबोचते, चबाते,
निगलते स्वाद लेता है
भूल जाता
हैं कि कभी वह गले में
फांस
बनकर अटक भी सकती है!
देवी
नागरानी