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Wednesday, June 15, 2011

आज और कल

यही वह समय है

जब वक़्त के गलियारे से

गुज़रते हुए

अपने बीते हुए "कल" का किवाड़

अपने पीछे बंद कर दें

और, आने वाले कल को

अपनाने के लिए 'आज' का दरवाज़ा खुला रखें

आज का वक़्त

उस अध्ययन में बिताएं

तो फिर शायद वो ग़लतियां

सामने न आए, जो

कल के किवाड़ के पीछे

हम बंद कर आए हैं.

देवी नागरानी

Tuesday, June 7, 2011

अनकही यादें

मूक ज़ुबान


कुछ कहने की कोशिश में

फिर भी नाक़ाबिल रही

नहीं बयां कर पाई उन अहसासों को

जो उमड़ घुमड़ कर

यादों के सागर की तरह

उसकी प्यसी ज़ुबाँ के अधर तक आ तो जाते हैं

पर अधूरी सी भाषा में

वह अनकही दास्तां

बिना कहे, फिर मौन रह जाती है

यह बेबसी है उसके सिये हुऐ लबों की

जो आज़ादी के नाम पर

अब भी दहशतों की गुलामी में

जकड़े हुए हैं.

देवी नागरानी

Sunday, June 5, 2011

आस का दामन

यक़ीन की डोर पकड़ कर

मेरे इस मासूम से मन को

आस का दामन छूने की तमन्ना

अब तक है,

सामने सूरज की रौशनी

आस की लौ बनकर

जगमगा रही है

पर, जाने क्यों?

ज़िंदगी की दल-दल में

विवशता धँसती ही जा रही है

मेरी मुफ़लिसी की,

मेरी अपंगता की

जो मेरी अक्षमताओं का

प्रद्रशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ती

पर सांसें निराशा का दामन

छोड़ कर, आज भी

जीवन का हाथ थाम रही है

शायद उन्हें अपना मूल्य कथने की

आज़ादी है.

Thursday, June 2, 2011

रेती-रेती, साहिल-साहिल

बहता जीवन मेरी मँजिल

बह गई सब आशाएं

निराशाओं की धार में,

भूख, प्यास, चोरी, डाके

सब के सब हथियार गुनह के

कोई कैसे बचे बचाए,

चोर के घर में चोर जाए

कहो कैसे कोई किसे समझाए

देवी नागरानी